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प्राचीन लंका की खोज और पहचान

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रावण की मूल लंका की खोज- ( कृपया पूरे पोस्ट को पढकर प्रतिकि्रया अवश्य दें)                        झारखंड के देवघर से 15 किलोमीटर  की दूरी पर प्रकृति की गोद मेँ स्थित आर्थिक दृष्टि से कॉफी महत्वपूर्ण 2110 वर्गक एकड़ क्षेत्रफल और 25 वर्ग किलोमीटर की परिधि मेँ घिरा 2470 फूट उंची चोटीवाला त्रिकुट पर्वत है जो वर्तमान मेँ त्रिकुटी पहाड के नाम से जाना जाता है। यह वही पर्वत हे जो सृष्टि के आदि मेँ मंदार पर्वत (बौंसी, बिहार) के साथ उत्पन्न हुआ- " मन्दरं चरमं चैव त्रिकूट मुदयाचलम् ।अन्यांश्च पर्वतांश्चैव सृष्टिवान्वधानपि।।" इस पर्वत ने देवलोक सभ्यता ,असुर सभ्यता, स्वर्गपुरी की सभ्यता, मेरु सभ्यता, लंका सभ्यता आदि के साथ साथ मानव सभ्यता के विकास को विशेष रुप से प्रभावित कर उसे आदर्श स्वरुप प्रदान करने मेँ अहम भूमिका निभाई है। जब हम पौराणिक भूगोल के आधार पर इस पर्वत का भौगोलिक सर्वेक्षण करते हैं तो इसके पूर्व, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण के ऐतिहासिक पर्वतो को देख कर आस्चर्यचकित रह जाते हैं। साथ ही सहसा यह प्रश्न मन मेँ कौंधने लगता है क...

मंदार पर्वत और मूल कैलाश

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भगवान शिव और प्राचीन  कैलाश का वर्णन - (सावन पर विशेष) वामन पुराण में यह स्पष्ट उल्लेख है कि "सप्तर्षि ने मंदार गिरि (मंदार पर्वत) पर आकर गिरिजा (हिमवान पुत्री) को बधू बनाने के लिए आग्रह कर शिव को राजी किया । तब भगवान शिव वैवाहिक विधि संपन्न करने के लिए देवगंधर्वों , दूतों, भूतों, ब्रह्मा, विष्णु सहित महान कैलाश पर्वत(कैलाश पहाडी, देवघर) पर गये ।     "आसाद्य मन्दरगिरि भूयो$वन्दत शंकरम, ततस्तस्मात्महाशैलं कैलासं सह देवत:... जगाम भगवान शर्व.... वैवाहिक विधिम" ।     उधर कैलाश पर्वत पर हिमवान के गृह धूमधाम हो ही रहा था कि क्षणमात्र में शिव पर्वतराज हिमालय कैलाश पर पहुंच गये । वैवाहिक विधि संपन्न होने पर शिव पार्वती अपने भूतगणों के साथ मंदराचल पर चले आयें।         " सम्पूजित: पर्वतपार्थिवेन स मन्दरंशीघ्रमुपाजगाम" (वा० रा०)   __________________________________   प्रजापति दक्ष ने सती को अपनी पुत्री होने पर भी कपाली की पत्नी समझकर निमंत्रण के योग्य न मानकर उन्हें यज्ञ में नहीं बुलाया । इसी बीच देवी का दर्शन करने के लिए गौतम पुत्...

क्या झारखंड में स्थित थी मूल द्वारिका

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मूल द्वारिका की खोज और पहचान - भगवान श्रीकृष्ण की द्वारिका की खोज भूगर्भ वेज्ञानिकों एवम पुराविदों द्वारा समुद्र के बीच जगह जगह की जा रही है। पता नहीँ वे किस आधार पर द्वारिका की पहचान समुद्र मेँ देखना चाहते हैं। पहले तो उन्हें यह खोज कर लेना चाहिए था कि महाभारत कालीन द्वारिका की भोगोलिक स्थिति क्या थी? जिस समय द्वारिका को बसाया गया था उस समय समुद्र की स्थिति क्या थी और इस संबंध मेँ पौराणिक ग्रंथ क्या कहते हैं?                                             मूल सभ्यता के विकास की कहानी, सांस्कृतिक मूल्य और चिंतन चाहे अलग -अलग ढंग से प्रस्तुत की गई हो लेकिन मेरे बिगत चालीस वर्षोँ के अनुसंधान कार्योँ से यह स्पष्ट हो गया है कि संसार का सबसे प्राचीनतम स्थल अंगदेश रहा है। जहाँ महाभारतकालीन द्वारिका का इतिहास कैद है।                             महाभारत में द्वारावती की पहचान बताते हुए कहा गया है कि "वहाँ पास...

श्रीलंका का इतिहास

श्री लंका की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि -  यह निर्विवाद रुप से सत्य है कि वर्तमान श्रीलंका मूल लंका का एक खंडित भूभाग है ।अधिकांश भूगोलवेत्ताओं ने यह एक स्वर से यह    स्वीकार किया है कि " श्रीलंका पहले भारत की मुख्य भूमि का अंग था। अब यह पाक जलसंयोजक द्वारा भारत भूमि से पृथक है। यह पाक जल संजोयक एक खंडित पुल है जो आदम पुल के नाम से विख्यात है।" लेकिन वर्तमान श्रीलंका की स्थापना मेँ ये भूगर्भशास्त्री एवं पुराविद मौन हैं।  अब तक श्रीलंका के बारे में मीडिया वालोँ ने जो इतिहास परोसा है वह बिल्कुल ही निराधार है तथा पौराणिक, भौगोलिक एवं रामायणकालीन भूगोल से भी मेल नहीँ खाता है। इसलिए इसे हम इतिहास का विषय वस्तु नहीँ मान सकते। वर्तमान मेँ मान्यताओं मेँ एशिया का भूगोल यह स्वीकारता  है कि" वर्तमान मेँ यहाँ( श्रीलंका) सिंहली जाति के लोगोँ की संख्या अधिक है। इसलिए इसे सिंहलद्वीप कहा जाने लगा। सिंहलद्वीप से इसका नाम सीलोन पडा। इन भूगोलवेत्ताओ को यह खोज कर लेना चाहिए था कि सिंहली जाति या सिंहलद्वीप की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि क्या रही थी। भूगोल को इतिहास की जानकारी आवश्यक है और इतिहास को...

राम जन्मभूमि का प्रमाण

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रामजन्मभूमि और अयोध्या का प्रमाण - (क्या अयोध्या मंदार पर्वत पर स्थित थी )                                                                (कृप्या पूरा पोस्ट पढें)  वायुपुराण , हरिवंशपुराण और ब्रह्माण्ड पुराण के अनुसार सांतवें मन्वन्तर के २४वें त्रेता में रामावतार सिद्ध होता है  । चौबीसवें त्रेता के सांतवें मन्वन्तर में राम जन्म मानने पर राम का जन्म काल लगभग दो करोड वर्ष पूर्व ठहरता है - " चतुर्विशे युगे विश्वामित्रपुर: सर : रामो दशरथस्यास्य पुत्र पद्मायतेक्षण :" ।   महाभारत के अनुसार त्रेता और द्वापर की संधि में श्रीरामावतार सिद्ध होता है-" संध्यशे समनुप्राप्ते त्रेताया द्वापरस्य च अहं दाशरथो रामों भविष्यामि जगत्पति:" ।।    उक्त रीति के अनुसार अनादिकाल से अयोध्या श्रीरामजन्मभूमि है । महर्षि वाल्मीकि ने अयोध्या को आदिराजा इक्षकवाकु की राजधानी माना है - " मनु प्रजापति: पूर्वमिक्षकवाकुश्च मनो: सूत: ...