श्रीलंका का इतिहास
श्री लंका की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि- यह निर्विवाद रुप से सत्य है कि वर्तमान श्रीलंका मूल लंका का एक खंडित भूभाग है ।अधिकांश भूगोलवेत्ताओं ने यह एक स्वर से यह स्वीकार किया है कि " श्रीलंका पहले भारत की मुख्य भूमि का अंग था। अब यह पाक जलसंयोजक द्वारा भारत भूमि से पृथक है। यह पाक जल संजोयक एक खंडित पुल है जो आदम पुल के नाम से विख्यात है।" लेकिन वर्तमान श्रीलंका की स्थापना मेँ ये भूगर्भशास्त्री एवं पुराविद मौन हैं। अब तक श्रीलंका के बारे में मीडिया वालोँ ने जो इतिहास परोसा है वह बिल्कुल ही निराधार है तथा पौराणिक, भौगोलिक एवं रामायणकालीन भूगोल से भी मेल नहीँ खाता है। इसलिए इसे हम इतिहास का विषय वस्तु नहीँ मान सकते। वर्तमान मेँ मान्यताओं मेँ एशिया का भूगोल यह स्वीकारता है कि" वर्तमान मेँ यहाँ( श्रीलंका) सिंहली जाति के लोगोँ की संख्या अधिक है। इसलिए इसे सिंहलद्वीप कहा जाने लगा। सिंहलद्वीप से इसका नाम सीलोन पडा। इन भूगोलवेत्ताओ को यह खोज कर लेना चाहिए था कि सिंहली जाति या सिंहलद्वीप की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि क्या रही थी। भूगोल को इतिहास की जानकारी आवश्यक है और इतिहास को भी भूगोल की जानकारी परम आवश्यक है। पहले हम श्रीलंका की एतिहासिक पृष्ठभूमि पर ध्यान देँ।पिछले पोस्ट में हम यह देख चुके हैँ कि भारतवर्ष के अंगद्वीप के अंतर्गत त्रिकुट पर्वत पर रावण की लंका स्थिति थी। जो सिंहल द्वीप के आसपास था। सिंहल द्वीप का भी स्वतंत्र इतिहास है। कश्यप की दूसरी पत्नी का नाम दनु था, जिसका प्रथम पुत्र विप्रचिति दानव था। इसी की पुत्री सिहिंका थी।विप्रचिति ने सिहिंका के गर्भ से चौदह असुरों को उत्पन्न किया जो सबके सब सिंहिका कहलाये और इसी सिंहिका के नाम पर प्राचीन सिंहद्वीप का नाम सिंहलद्वीप पडा। जो वर्तमान में मंदार पर्वत से पूरब बढ़हड़वा पाकुड़(झारखंड) के बीच विशाल पर्वतीय क्षेत्रों से घिरा हुआ है। यहाँ दनु, हिरण्यकश्यपु आदि दैत्यों के नाम से पर्वत भी है जो गुफा एवं लिपि युक्त है। यहीं के सिंहलवासी सिंहली कहलाये। अभी भी यहाँ सिंहल पहाड साक्षय रुप में मौजूद है। जब त्रिकूटवासी ( देवघर) रावण और राम में युद्ध हुआ तब अंतिम समय में हनुमान रावण से मिले और बोले कि "अभी भी आप सीता माता को श्रीराम को सौंप दें।" तब रावण ने गर्व से कहा कि "जब तक राम अपने बाहुबल से अपने 'श्री' को जीत न लें तब तक मैं राम को श्रीराम भी नहीं कह सकता। चूंकि राम का 'श्री' तो हमारे पास है। अन्तत: राम और रावण में युद्ध के दरम्यान रावण जब मरने लगा तो मरते वक्त उसने अपने मुख से श्री-श्री का अंर्तनाद किया । यह सुनकर बचे हुए सिंहलद्वीप लंकावासी भागकर जहाँ बसे वही 'श्रीलंका' कहलाया। चूंकि सबों के मुख से श्री श्री निकल रहा था और वो भाग रहे थें। भागते हुए इसी रावण के अनुयायियों ने समुद्र में पुल बनाकर टूटे हुए लंका के भाग में अपना निवास बनाया और वहीं बस गए। विभीषण लंका के राजा बने और राक्षस धर्म त्याग कर आर्य धर्म मेँ दीक्षित हुए। परंतु विभीषण के वंश का प्रताप अधर्म के कारण अस्त हो गया। लंका मेँ जो भी बचे यत्र तत्र भाग गए और उन्होने ही बर्तमान लंका को बसाया। जिसे श्रीलंका कहा जाता है। अत: मूल लंका देवघर सिथत त्रिकूट पर थी।
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